नमस्कार आदाब,दोस्तों,
तथ्य :-
किसी ने क्या खूब ही कहा है --
''' तिनके चुन चुन कर अपना घोसला बनाती है |
वह मेहनती पक्षी गौरेया कहलाती है | ''
बचपन में सुनी चिड़ियों और पक्षियों की चहचाहट आज कम ही सुनाई देती है ,कभी हमारे जीवन का और हमारे घरों का ही हिस्सा रहीं चिड़ियाओं की संख्या आज लगातार कम होती जा रही है,जिसका कारण आधुनिक जीवन शैली व भड़ता प्रदूषण है |
इंसानो से आसानी से घुलमिलकर रहने वाले इन पक्षियों का जीवन आज खतरे में है अगर इनको बचाने के प्रयास नहीं किये गए तो यह जल्द ही विलुप्त हो जायगे |
आज हम बात करेंगे गौरेया के बारे में तथा उनको बचाने के प्रयासों के बारे में तो आइए जानते हैं कुछ जानकारिया :-
आज के ब्लॉग में हम पड़ेंगे -
विश्व गौरेया दिवस क्यों मनाते है ?
चिड़ियों की संख्या कम होने का क्या कारण है ?
गौरेया दिवस कब मनाते हैं ?
संख्या कम होने के कारण :-
भड़ता प्रदूषण ,आधुनिक जीवन शैली ,आवासों के लिए प्राकतिक जगह का न होना इनकी घटती जनसंख्या का प्रमुख कारण है | प्राकतिक वातावरण व पेड़ पौधों को त्याग कर हमने कंकरीट का जो जंगल बनाया है उनसे भी पक्षियों को बहुत नुकसान हुआ है |
इसके अलावा मोबाइल के टावरों से निकलने वाले रेडिएशन से भी इनके जीवन पर प्रभाव पड़ा है |
बचाने के प्रयास :-
गौरेया को बचाने के लिए कई कैम्प चलाए जाते हैं जैसे कि सड़को पर परिंदो के पानी पीने के लिए जल पात्र एव कई पेड़ों और स्थानों पर कृत्रिम घोसले भी लगाए गए जिससे की गोरैया और अन्य पक्षियों की प्रजाति को विलुप्त होने से बचा सके और इस पक्षी की सुन्दर आवाज़ हम सवेरे सुन सके |
गोरैयाओं को बचाने के उद्देश्य से ही नेचर फोरेवर सोसायटी ( भारत ) के प्रयासों के कारण ही हर साल 20 मार्च को विश्व गौरेया दिवस मनाया जाता है |
इस सोसायटी की स्थापना का उद्देश्य पक्षियों को बचाना तथा उनकी सहायता करना है |
भड़ता प्रदूषण ,आधुनिक जीवन शैली ,आवासों के लिए प्राकतिक जगह का न होना इनकी घटती जनसंख्या का प्रमुख कारण है | प्राकतिक वातावरण व पेड़ पौधों को त्याग कर हमने कंकरीट का जो जंगल बनाया है उनसे भी पक्षियों को बहुत नुकसान हुआ है |
इसके अलावा मोबाइल के टावरों से निकलने वाले रेडिएशन से भी इनके जीवन पर प्रभाव पड़ा है |
बचाने के प्रयास :-
गौरेया को बचाने के लिए कई कैम्प चलाए जाते हैं जैसे कि सड़को पर परिंदो के पानी पीने के लिए जल पात्र एव कई पेड़ों और स्थानों पर कृत्रिम घोसले भी लगाए गए जिससे की गोरैया और अन्य पक्षियों की प्रजाति को विलुप्त होने से बचा सके और इस पक्षी की सुन्दर आवाज़ हम सवेरे सुन सके |
गोरैयाओं को बचाने के उद्देश्य से ही नेचर फोरेवर सोसायटी ( भारत ) के प्रयासों के कारण ही हर साल 20 मार्च को विश्व गौरेया दिवस मनाया जाता है |
इस सोसायटी की स्थापना का उद्देश्य पक्षियों को बचाना तथा उनकी सहायता करना है |
बात पते की :-पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाओगे तो सांसों पर तलवार चल जाएगी |
तथ्य :-
गौरेया के अन्य नाम जैसे चिड़ी, चकली, चेर आदि है |
गौरेया दिवस को प्रथम बार 20 मार्च 2010 को मनाया गया था |
नेचर फोरेवर सोसायटी की स्थापना नासिक के रहने वाले मोहम्मद दिलावर ने की थी |
गौरेया कीटो, अनाज के दानो व बीजों को खाती है |
गौरेया की गिरती हुई संख्या को देखकर साल 2012 में गौरेया को दिल्ली का राज्य पक्षी
घोषित किया किया गया |
Your best teacher is your last mistake.
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