हज़रत यूनुस (अ.स.) और मछली का वाकिया: अल्लाह की रहमत और कुदरत का इज़हार
हज़रत यूनुस (अ.स.) का वो वाकिया, जो उन्हें मछली के पेट में डाले जाने के बाद हुई मुश्किलों और फिर अल्लाह की तरफ से आयी मदद के बारे में बताता है | हज़रत यूनुस और मछली वाला यह वाक़िया इस्लाम और कुरान की सबसे अज़ीम कहानियों में से एक है। यह वाकिया अल्लाह की क़ुदरत और रहमत का इज़हार करता है, जो अपने बंदों को हर हालात में अपनी मदद और माफी देता है।
इस ब्लॉग में हम हज़रत यूनुस (अ.स.) के वाकिया को समझेंगे, जो मछली के पेट में गए और वहां से निकले, और इस वाकिया से हम क्या सबक ले सकते हैं।
हज़रत यूनुस (अ.स.) और उनका पैगाम
हज़रत यूनुस (अ.स.) अल्लाह के एक अज़ीम पैगम्बर थे। उन्हें अपनी क़ौम बानी इस्राइल के लोगों को अल्लाह का पैगाम देने के लिए भेजा गया। अल्लाह ने उन्हें लोगों को सच्चाई और हिदायत की तरफ बुलाने का हुक्म दिया। लेकिन, जैसे कि बहुत सी कौमें अपने पैगंबरों को नकारती हैं, वैसे ही बानी इस्राइल ने भी यूनुस (अ.स.) का पैगाम नहीं सुना।
हज़रत यूनुस (अ.स.) ने अपने लोगों की बे-इमानत ( बेरुख़ी ) और उनकी तरफ से जवाब न मिलने पर गुस्से में आकर उन्हें छोड़ दिया और अपने शहर को छोड़कर चले जाने का मन बना लिया उन्हें अपनी क़ौम की तरफ से नफरत और बे-इमानत की वजह से गुस्सा आ गया था और अल्लाह के हुक्म के बग़ैर उन्होंने सफ़र शुरू कर दिया
मछली के पेट में जाना: अल्लाह की कुदरत का इज़हार
जब हज़रत यूनुस (अ.स.) अपनी क़ौम को छोड़कर सफ़र पर निकले, तो उन्हें एक नौका (जहाज) में सफ़र करना पड़ा। लेकिन सफर के दौरान एक बहुत शिद्दत का तूफान आया। नौका के लोग, जो उनके साथ थे, समझ गए कि इस तूफान का सबब किसी इंसान का गलत होना या खुदा की नाफ़रमानी हो सकता है।
सभी मुसाफिरों ने अल्लाह से तोबा की और आखिर में हज़रत यूनुस ने अल्लाह की नाफरमानी का अपना किस्सा बताया। जिसके बाद सभी नै तय किया की अगर अल्लाह के अज़ाब से बचना है तो हजरत यूनुस को जहाज़ से उतरना होगा हज़रत यूनुस ने ऐसा ही किया और वो समुन्द्र में कूद गए
हजरत यूनुस के कूदते ही एक विशाल मछली ने उन्हें अपने पेट में निगल लिया जहां उन्होंने दिल से अल्लाह की ओर तौबा की और दुआ की।
तौबा और दुआ: हज़रत यूनुस (अ.स.) की अल्लाह से माफी
जब हज़रत यूनुस (अ.स.) मछली के पेट में थे, तो उन्होंने अपनी गलती को समझा और अपनी बे-इमान क़ौम के लिए अल्लाह से माफी मांगी। यूनुस (अ.स.) ने अपनी दुआ में कहा:
"ला इलाहा इल्ला अन्ता, सुभानका इन्नी कुन्तु मिनाज़-ज़ालिमिन"
(तफसीर: 21:87), जिसका मतलब है, "तेरे सिवा कोई इलाही नहीं, तू पाक है, मैं अपने आप को ज़ुल्म करने वालों में से समझता हूं।"
उन्होंने अपनी तौबा और दुआ का इज़हार अल्लाह के सामने किया, और अल्लाह ने उनकी दुआ को कुबूल किया और उन्हें मछली के पेट से बाहर निकाल दिया। इस वाकिये से यह सबक मिलता है कि अल्लाह की रहमत हमेशा अपने बंदों के साथ होती है, और अगर हम अपनी गलतियों का एहसास करके तौबा करते हैं, तो अल्लाह हमारी मदद करता है।
मछली वाले वाक़िये से हम क्या सबक सीखते हैं?
1. तौबा और अल्लाह की रहमत
हज़रत यूनुस (अ.स.) का वाकिया सबसे पहले हमें यह सबक देता है कि अगर हम अपनी गलतियों को समझकर तौबा करते हैं, तो अल्लाह अपनी रहमत से हमारी मदद करता है। हम सभी की ज़िन्दगी में कभी न कभी गलतियां होती हैं, लेकिन जब हम अपने अज्ञान और कमियों को पहचानकर अल्लाह से दुआ करते हैं, तो अल्लाह हमारी मदद करता है।
2. अल्लाह की कुदरत
अल्लाह की क़ुदरत का सबसे बड़ा इज़हार यह है कि एक मछली ने हज़रत यूनुस (अ.स.) को अपने पेट में रखा और फिर अल्लाह की रहमत से उन्हें जिंदा बाहर निकाला गया । यह वाकिया अल्लाह की क़ुदरत और उसकी महानता का स्पष्ट उदाहरण है। अल्लाह की क़ुदरत हर चीज़ पर है, चाहे वह इंसान हो, जानवर हो, या कोई भी सजीव प्राणी हो। हर चीज़ अल्लाह के नियंत्रण में है और उसकी मरज़ी से हर चीज़ होती है।
3. सब्र और तवक्कल
हज़रत यूनुस (अ.स.) ने जो सब्र और तवक्कल का उदाहरण दिया है, वह हमारे लिए एक महान शिक्षा है। जब अल्लाह की रहमत और क़ुदरत पर विश्वास होता है, तो इंसान मुश्किलों का सामना आसानी से कर लेता है। यूनुस (अ.स.) ने अल्लाह पर भरोसा रखा और अपनी मदद के लिए दुआ की, जिससे हमें यह सीखने को मिलता है कि मुश्किल वक्त में हमें अल्लाह से ही उम्मीद रखनी चाहिए और उसी पर भरोसा करना चाहिए।
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